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सेवा के यज्ञ- कुंड में स्वयं की आहुति देने वाले स्वयंसेवक - अशोक वढेरा

डबवाली | हरियाणा

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हाँ वह दावानल ही था, द्वापर के बाद कलियुग में तबाही मचाने साक्षात अवतरित हुआ था। उस समय तो ईश अंश अवतरित कान्हा ने दावानल राक्षस (विकराल अग्नि का स्वरूप) की अग्नि का पान कर, गोकुल को तबाही से बचा लिया था किंतु आज वह स्वतन्त्र था। देखते ही देखते उसने हर तरफ तबाही का मंजर रच दिया। 23 दिसंबर 1995 को हरियाणा के डबवाली में डी.ए.वी विद्यालय के वार्षिकोत्सव में लगी आग में 450 जिंदगियां स्वाहा हो गईं थीं। चारों ओर धधक रही ज्वाला के बीच, जहां लोग अपनी जान बचाकर भाग रहे थे, वहां एक स्वयंसेवक ऐसा भी था जो माइक लेकर निरंतर अनाउंसमेंट करके भीड़ को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहा था ताकि कम से कम जिंदगियों का नुकसान हो। मौत उनके समक्ष प्रत्यक्ष खड़ी थी और वे हाॅल में मौजूद बच्चों का जीवन बचाने के लिए लड़ रहे थे। किंतु नियति को कुछ और ही मंजूर था, विकराल अग्नि ने उन्हे भी अपनी चपेट में ले लिया। समाज के कष्ट को अपना कष्ट मानने के, शाखा के संस्कार अपने साथ लिए डबवाली के तत्कालीन नगर कार्यवाह अशोक वढेरा जी चिरनिद्रा में लीन हो गए।

वो 23 दिसंबर 1995 का काला दिन था, जब क्रूर नियति ने मौत का यह तांडव रचा था।डबवाली में डी.ए.वी स्कूल का वार्षिकोत्सव एक मैरिज हॉल में चल रहा था। हाॅल का माहौल रंगीन व रसमय था, बच्चों की चहकन से वातावरण गुंजायमान था। तभी एक शार्टशर्किट का बहाना ले मौत दबे पांव हाॅल में अग्नि के रूप में आ पहुंची। चारों ओर लगी आग ने सबसे पहले स्कूल के बच्चों को अपनी चपेट में ले लिया। इधर-उधर जान बचाने के प्रयास में भागते लोग अंतत: स्वाहा ही हो रहे थे। सांस्कृतिक कार्यक्रम का पूरा पंडाल अब दावानल का रूप ले चुका था, चारों ओर चीख- पुकार मची हुई थी। शासन प्रशासन कुछ कर पाता इससे पहले ही आग में झुलसने वालों के ढेर लग चुके थे। डबवाली के नगर कार्यवाह अशोक जी उस समय पत्रकार दीर्घा में आगे बैठे थे। हाॅल के मालिक ओम धनेजा जी बताते हैं, अशोक जी जहां पर बैठे थे उसके पीछे एक कांटो वाली दीवार थी। जिस पर चढ़कर कुछ पत्रकार साथी व अन्य लोग दूसरी ओर कूद गए व अपनी जान बचाने में सफल रहे। परंतु अशोक जी मौके की गंभीरता को समझते हुए मंच पर जाकर माइक लेकर भीड़ को बाहर निकलने का मार्ग बताने लगे। जहां वे खड़े थे वहां स्वयं कुछ बच्चों को हाथ पकड़ कर पीछे वाले गेट से बाहर निकाला। अशोक जी के बड़े भाई की बेटी और उनकी बहन दोनों इस कार्यक्रम में थे, न ही उन्हें उन दोनों को बचाने का होश था, न खुद को। अग्नि ने कब उन्हें अपनी चपेट में ले लिया अशोक जी को पता भी नहीं चला। वढेरा जी इस कदर झुलस गए थे कि उनका शव घटना के तीसरे दिन जाकर उनकी अंगूठी से पहचाना जा सका। संघ की शाखा सिर्फ शाखा ही नहीं, मानव निर्माण की अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है। जहां से देश और समाज के लिये समर्पित मानवता का साकार स्वरुप निकल कर आता है। ऐसे ही एक व्यक्तित्व थे अशोक वढेरा जी,  23 फरवरी 1959 को हरियाणा के सिरसा जिले में मंडी डबवाली में जन्मे अशोक जी एक निडर पत्रकार व राष्ट्रभक्त स्वयंसेवक थे। 1978 में 19 वर्ष की उम्र में संघ से जुड़ने के बाद अशोक जी ने मानो अपने जीवन को राष्ट्र को समर्पित कर दिया था। शाखा के मुख्य शिक्षक की जिम्मेदारी संभालते हुए वे 3 वर्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक निकल गए। इस अग्निकांड से ठीक 2 वर्ष पहले सिरसा नदी में आई बाढ़ ने सैकड़ों घर उजाड़ दिए थे, तब अशोक जी अनवरत एक सप्ताह पीड़ित परिवारों के बीच भोजन, बर्तन, बिस्तर बांटने के साथ ही घायलों को अपने स्कूटर पर बिठाकर अस्पताल पहुंचाते रहे। उनके बड़े भाई विजय बढेरा जी बताते हैं, अशोक एक सप्ताह घर ही नहीं आए। हर वर्ष वे स्वयं भी रक्तदान करते थे और बाकी समाज को भी इसके लिए प्रेरित करते थे। विजय जी  उनके जीवन की एक घटना का स्मरण करते हुए बताते हैं कि जब पहली बार अशोक जी  की पत्नी माँ बनने वाली थीं, उसी दिन 17 नवंबर 1989 को डबवाली के जलघर में चलने वाली संघ की एक शाखा पर हुए आतंकवादी हमले में 11 स्वयंसेवकों का बलिदान हुआ। बगैर 1 मिनट गंवाए अशाेक जी अस्पताल से सीधे शाखा स्थान पर निकल गए व सभी स्वयंसेवकों के अंतिम संस्कार के बाद ही अस्पताल वापस आकर अपने बेटे का मुंह देखा। इतना ही नहीं उन्होंने घर वालों को ताकीद दी, कि आज कोई बधाई स्वीकार नहीं करेगा। आज हमारे साथियों का बलिदान हुआ है, घर में कोई खुशी नहीं मनाई जाएगी। डबवाली में अग्निकांड की सूचना मिलने के बाद सबसे पहले सहयोग के लिए पहुंचे स्वयंसेवकों में से एक तत्कालीन प्रांत सह कार्यवाह कैलाश भसीन जी बताते हैं, कि जब वे वहां पहुंचे पूरा परिसर मृतकों अैार घायलों से सटा पड़ा था। इतने कम समय में इतनी भीषण आपदा ! ना चाहते हुये भी किसी षड्यंत्र की ओर चिंतन करने को मजबूर कर रही थी‌।जमीन पर बिछा मोटा मैट शीघ्रता से आग नहीं पकड़ सकता था किंतु लोगों के पाँव झुलस गये थे। लेकिन हमारे पास इस पर चिंतन का समय नहीं था। स्वयंसेवकों के साथ-साथ समाज के लोग भी रक्तदान के लिए सामने आए। अब बारी थी, बचे हुए लोगों को बचाने की और उनके मनोबल को बढ़ाने की। 

डबवाली की जनसंख्या 50,000 थी व मृतकों की संख्या 500। ऐसे में स्वयंसेवकों ने जी जान से उनके ज़ख्मों पर मरहम लगाने का काम अति शीघ्रता से प्रारंभ किया। टोली बनाकर घर-घर सर्वे किया, बाद में यही सर्वेक्षण सरकारी सर्वे का आधार बना। समाज के लोगों की सहायता ली, टैक्सी यूनियन वालों से सहयोग लेकर घायलों को अस्पताल पहुंचाने के लिये मुफ्त टैक्सियों की व्यवस्था की गई।ढ़ाबे वालों ने मुफ्त चाय, भोजन की व्यवस्था की, केमिस्ट यूनियन ने मुफ्त अैाषधियों की व्यवस्था की, अस्पताल में रक्त दाताअेां की लम्बी कतार लग‌ गई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सूचना केंद्र भी स्थापित किये। मृतकों के अंतिम संस्कार हेतु खेतों का उपयोग करना पड़ा। आस पास के क्षेत्रों से भारी संख्या में लोगों ने अपना सहयोग दिया। शवों की पहचान से लेकर, हरिद्वार में अस्थि विसर्जन तक की व्यवस्था पूरी तन्मयता से स्वयंसेवक कर रहे थे। परिवारों की मानसिक दशा देखते हुये, जगह-जगह शांति यज्ञ किए गए। 

'पूज्य माँ की अर्चना का एक छोटा सा उपकरण हूं ' इस गीत को अपना जीवन ध्येय मानने वाले स्वर्गीय अशोक जी की स्मृति में सरस्वती शिशु मंदिर का नाम 'अशोक वढेरा सरस्वती विद्या मंदिर रखा गया'। अशोक जी को मरणोपरांत भारत सरकार द्वारा "राष्ट्रीय युवा पुरस्कार" से भी सम्मानित किया गया।


लेखिका:-  श्रीमती शैलजा शुक्ला ✍

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